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महिला की असली स्वतंत्रता ‘महिलापन’ में है

-विभा प्रकाश श्रीवास्तव प्रात: स्मरणीय अहिल्याबाई का मूल वाक्य था, ‘मैं अपने प्रत्येक कार्य के लिए ज़िम्मेदार हूं।’ इसी प्रकार महिला की तथाकथित ग़ुलामी, बेबसी, परतंत्रता, दोयम दर्जा इन सबके लिए कहीं न कहीं महिला स्‍वयं भी ज़िम्मेदार है, क्योंकि पारंपरिक रूप से उसे कोमलांगी, सुकुमारी, घर की रानी आदि कहा गया और उसने बड़े प्रसन्न होकर इन क़ैद करने वाले ...

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हमें भी तो चाहिए एक मुट्ठी आसमान

जिन परिस्थितियों से निकलने के लिए वह विवाह न करने का संकल्प लेती है, यह समाज उसके समक्ष उन परिस्थितियों से भी कहीं बदतर स्थितियां उत्पन्न कर देता है।

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ज़िन्दगी जीने के लिए है बेशक़

–दीप ज़ीरवी जब बात ज़िंदगी की आती है तो ज़िन्दगी से जुड़े अनेक ‘दर्शन’ अपना दर्शन देते हैं। दार्शनिकों के ‘दर्शन’ का दर्शन करें तो पाएंगे कि ज़िन्दगी को अनेक सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है। ज़िन्दगी को जिसने जिस दृष्टिकोण से देखा ज़िन्दगी का वैसा रंग उसने पाया। नेत्रहीन मित्रों के हाथी-दर्शन करने के सदृश्य ज़िंदगी रूपी विशाल ...

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ज़िंदगी में दु:ख भी आते हैं

  -सुमन कुमारी इंसान की ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। ज़रूरत है इस समय खुद पर संयम रखा जाए। वक्‍़त बुरे से बुरे घाव भी देता है परंतु ज़िंदगी से मुख मोड़ना अनुचित है। दु:ख में भी मानसिक संतुलन बनाए रखें। ऐसे अनुभव जीवन को और सुदृढ़ बनाते हैं। ज़िंदगी सुख व दु:ख का सुमेल है। दु:ख ...

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पलना छोड़ कर जीना सीखें

  -दीप ज़ीरवी सुबह उठना, नित्य क्रम निपटाने, खाना-पीना, बच्चे पैदा करना और सो जाना यह सब क्रियाएं करना ही आज पर्याप्‍त मान लिया गया है। मोटी-ठाड़ी भाषा में इसे ही जीना कह दिया जाता है। यदि यह जीना है तो यह कार्य तो जानवर भी करते हैं फिर उनमें और हम में, हम इन्सानों में क्या भेद रह जाता ...

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स्वयं के विश्वास से पैदा करें आत्मविश्वास

  -आकाश पाठक सफलता की सर्वश्रेष्‍ठ कुंजी है आत्मविश्‍वास। आत्मा यानि कि मन। मन में स्फुटित रंग से आंशिक विश्‍वास को आत्मविश्‍वास में बदला जा सकता है, बस आवश्यकता है तो संकल्प की। ज़िन्दगी में संकल्प और विकल्प हर समय मौजूद रहते हैं ज़रूरत है सिर्फ़ आत्मविश्‍वास की, इच्छा शक्‍ति की। अक्सर देखा जाता है कि आत्मविश्‍वास के अभाव के ...

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मीठा मीठा बोल

-धर्मपाल साहिल बेचारा कौआ, न किसी से कुछ लेता है, न देता है। फिर भी हम उसे मुंडेर पर भी बैठने नहीं देते। हमें उसके बोल अच्छे नहीं लगते। कई बार तो हम उसके मुंह पर भी यह कहने से गुरेज़ नहीं करते, ‘क्या कौए की भांति कांव-कांव लगा रखी है।’ इसके विपरीत कोयल हमें क्या देती है ? पर ...

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आत्म विश्‍वास

जब व्यक्‍ति को चारों तरफ़ से दु:ख और विपत्तियों का सामना करना पड़े, सब तरफ़ से असफलता ही प्राप्‍ति हो, अपनों से सम्बंध टूट जाएं या व्यक्‍ति जीवन के अंधकारमय पथ पर अकेला ही रह जाये, सब तरफ़ से अंधकार भरे कुएं उसे निगलने को तैयार नज़र आने लगें, तो व्यक्‍ति क्या करे ? क्या वह फिर कुछ कर सकता ...

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सहज प्रीत की सहज (साखी) कहानी

-दीप ज़ीरवी भारत भूमि की विराट कैनवस है जिस पर समय के चित्रकार ने अपनी तूलिका से समय-समय पर विभिन्न रंग बिखेरे हैं। कहीं महाभारत का समरांगण तो कहीं गोकुल, कहीं वृन्दावन। कहीं दक्षिण के पठार, कहीं हिमालय को छेड़ कर निकलती शीतल बयार, समय के चित्रकार की यह अनुपम कला कृतियां ही तो हैं। मेरे भारत के कण-कण में ...

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क्यों होता है प्यार अंधा

–सुरेन्द्र सिंह चौहान ‘काका’ मैं वह रात कभी नहीं भूल सकती, जब मैं हाथों में चाय का प्याला लिए घड़ी की सुइयों को देख रही थी। मैं हाल ही में चंडीगढ़ से मुम्बई आई थी। आज की शाम मैंने अपने प्रेमी चेतन के साथ गुज़ारी थी। मुझसे विदा लेने के बाद वह एक अन्य युवती के साथ फ़िल्म देखने चला ...

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