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परख विज्ञान की, प्रेम को नशा मानते हैं वैज्ञानिक भी

-डॉ.सन्त कुमार टण्‍डन ‘ रसिक’ प्रेम का एक नशा होता है जो दीवानगी पैदा कर देता है। तभी कहते हैं लव इज़ ब्लाइंड। प्रेम की कोई जाति, धर्म, उम्र नहीं होती। यह कोकीन या किसी भी मादक द्रव या पदार्थ की तरह चढ़ता है। यह बात मनोवैज्ञानिक तो मानते ही थे, अब वैज्ञानिक भी मानते हैं। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने ...

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मां-बाप, बच्चे और जनरेशन गैप

-दीप ज़ीरवी ईश्‍वर के चरण, भगवद्प्रसाद इत्यादि अलंकारों से सुसज्जित माता-पिता जिन के कारण औलाद संसार में आती है, दुनियां देखती है, दुनियादारी सीखती है। वह मां-बाप जिन की दुनियां उनके बच्चे होते हैं उनके बच्चों से दुनियां होती है उनकी। बहुतेरे मां-बाप बेटा हो अथवा बेटी वो अपने प्रत्येक बच्चे को अनूठा प्यार और दुलार देकर पालते पोसते हैं ...

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टूटे संयुक्‍त परिवार पड़ी संस्कृति में दरार

-शैलेन्द्र सहगल संस्कारों के बिना संस्कृति उस कलेंडर की भांति है जो उस दीवार पर टंगा रह जाए जिस घर को पुश्तैनी सम्पत्ति के रूप में जाना तो जाए मगर रहने के लिए, जीने के लिए अपनाया न जाए उसे ताला लगाकर उसका वारिस नए और आधुनिक मकान में रहने चला जाए। कलेंडर बनी संस्कृति में उन तिथियों की भरमार ...

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संयुक्‍त परिवार का टूटता तिलिस्म

  -पवन चौहान नैतिकता की पहली पाठशाला परिवार को माना जाता है। लेकिन परिवारों के बिखराब के साथ ही नैतिकता, सामाजिक नियमों व कानूनों, रहन-सहन में भी बहुत बदलाव आ चुका है। यदि वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो संयुक्त परिवारों का अस्तित्त्व धुंधला-सा हो गया है। संयुक्त परिवारों के मज़बूत स्तंभों के ढहते ही समाज का सारा ढांचा गड़बड़ा ...

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पारिवारिक रिश्तों में मधुरता लाए

  -सुमन भारत में रीति-रिवाज़ों और संस्कारों को महत्ता दी जाती है। इन रीति-रिवाज़ों और संस्कारों से परिवार जुड़े हैं। परिवार टूटने से संयुक्त परिवारों में जितना प्यार अपनापन होता है एकल परिवारों में देखने को नहीं मिलता। मगर आधुनिकता की नई दौड़ में जहां परिवार टूट रहे हैं वहीं उनमें प्यार व स्नेह की कमी भी नज़र आने लगी ...

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रिश्तों को संभालना सीखें

  -माधवी रंजना ‘आंसुओं से धुली खुशी की तरह, रिश्ते होते हैं शायरी की तरह।‘ किसी शायर ने रिश्तों के बारे में कुछ इस तरह से बयां किया है। चाहे वह भाई बहन का रिश्ता हो या दोस्तों का, रिश्तों को लम्बे समय तक निभाने के लिए कुछ कायदे आवश्यक हैं। भारत में व विदेशों में रिश्तों की अहमियत को ...

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बहू की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना कितना ज़रूरी

-ज्योति खरे “बहू, तुम अपनी तैयारी कर लो। राजीव के कपड़े भी रख लेना, सुबह की गाड़ी से तुम दोनों चले जाओ।” बुख़ार से कराहती शोभा ने अपनी बहू राखी से कहा तो सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। थोड़ी देर ख़ामोशी छायी रही। राखी के ससुर ने अपनी ही पत्नी शोभा से कुछ सोच-विचार के बाद कहा, “तुम्हें इतने ...

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आत्मीय रिश्तों के अभाव में भटकती भावी पीढ़ी

-खेमराज शर्मा इक्कीसवीं सदी की भावी पीढ़ी आज एक ऐसे दौर से गुज़र रही है जहां उसे अपनों से अपेक्षित अपनापन नहीं मिल रहा है। परिणामस्वरूप वर्तमान पीढ़ी व भावी पीढ़ी के बीच भावनात्मक सोच का अन्तर निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस अंतर को आज ‘जनरेशन गैप’ के नाम से जाना जाता है। यह जेनरेशन गैप न तो ...

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विवाह से पहले आपसी परख

-संदीप कपूर विवाह भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुरुष और नारी के उस रिश्ते का नाम है, जो उन्हें जीवनपर्यंत निभाना होता है और इस रिश्ते में यदि मामूली-सी दरार भी पड़ जाए तो दाम्पत्य के छिन्न-भिन्न हो जाने में कोई कसर नहीं रह जाती। पति-पत्नी के आपसी विचारों की एकता पर ही दाम्पत्य की नींव सुदृढ़ ...

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पति पत्‍नी के बीच में

  -दीप ज़ीरवी कहते हैं कि शादी बूर का लड्डू है, जो खाय वो भी पछताए, जो न खाए वो भी पछताए। सुकरात ने कहा था कि शादी करवाने वाला तो दु:खी होता ही है किन्तु शादी न करवाने वाले भी सुखी नहीं कहे जा सकते। किसी के विचार में शादी एक आवश्यक ग़लती है जो हर व्यक्‍ति को करनी ...

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