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हमारी संस्कृति और प्रेम भावना

  -बलबीर बाली आज के इस भौतिकवादी युग में समाज मात्र एक वस्तु सी बन कर रह गया है। कुछ समय पहले की बात है कि हम अमरीका जैसे राष्ट्र को भौतिकवादी राष्ट्र समझते थे, जहां मानवीय मूल्यों की कोई महत्ता नहीं, प्रत्येक व्यक्‍ति को अपनी पड़ी होती है, दूसरा अन्य चाहे वह जिये या मरे, किसी को उससे कोई ...

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रिश्तों का भंवर : बदलते परिवेश में रिश्ते

-शैलेन्द्र सहगल वैसे तो सृष्‍ट‍ि का प्रथम सम्बन्ध अपने रचयिता से ही माना जाना चाहिए मगर इन्सान अपनी ज़िन्दगी की स्लेट पर रिश्तों की इबारत लिखते समय जो प्रथम शब्द मुंह से उच्चारित करता है वह उसका अपनी मां से मातृत्व का वो अमर रिश्ता स्थापित करता है जिसके लिए उसकी मां उस पर सदैव अपना सर्वस्व न्योछावर करने के ...

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प्रेम की दुश्मन दुनिया

  –शोभा आफताब यारो मेरी अर्थी उठाने से पहले, दिल निकाल लेना जलाने से पहले। इस दिल में रहता है और कोई कहीं वो न जल जाए मेरे जल जाने से पहले। प्यार भी क्या ग़ज़ब की चीज़ है जिसे पाने की हर किसी को चाहत होती है। यह प्यार मिल जाए तो ज़िन्दगी स्वर्ग लगने लगती है और बिछड़ ...

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प्रेम पराकाष्‍ठा में नारी परमात्मा स्वरूप

–रमेश सोबती ढाई अक्षरों का शब्द प्रेम जितना सीमित है इस का अर्थ उतना ही विराट है। प्रेम की व्याख्या है-“जो प्रसन्नता प्रदान करे।” प्रेम में संतुष्‍टि का तत्व निहित है, यही संतुष्‍टि प्रेम अथवा प्रणय की प्रेरक शक्‍ति है। इस चरम तृप्‍ति-प्रद प्रेम भावना का मूल स्थान हमारी आत्मा में है, क्योंकि आत्मिक प्रेरणा के अभाव में कोई भी ...

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क्या आकर्षण ही प्रेम है

  –बलबीर बाली बात हमारे मित्र पंकज की है। मित्र क्या वो तो हमारे छोटे भाइयों की तरह है। शायद इसलिए ही वह हमसे कोई बात नहीं छिपाता था परन्तु उस दिन तो पंकज के रंग-ढंग ही बदले हुए थे। समय दोपहर लगभग 12 अथवा 12.30 का होगा। हम अपने ऑफ़िस के लिए तैयार हो रहे थे, कि अचानक हमारे ...

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न उम्र की सीमा हो

-आकाश पाठक जहां एक और संस्कृति बदलती जा रही है फैशन समय-दर-समय करवट बदलता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पुरुष एवं स्त्री की विचारधाराओं में व्यापक परिवर्तन होता जा रहा है जो कि लाज़िमी है। विवाह या शादी को उन्नीसवीं शताब्दी में ‘गुड्डे-गुड़ियों का खेल’ की भावना से लिया जाता था, यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा, कारण-बीते ...

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गर्ल फ्रैण्ड से शादी,ना बाबा ना

  -नील कमल (नीलू) आज के भारतीय युवक जब बेमायने बंदिशों व भारतीय संस्कृति के पुराने व निरर्थक विचारों को पीछे छोड़ व अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई कड़ी ज़ंजीरों को तोड़ कर बेख़ौफ हो खुली हवा में उड़ने के लिए प्रयत्‍नशील हैं, वहीं यह भी सोचने लायक बात है कि क्या वास्तव में वे अपनी मानसिकता को बदलने में ...

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नए कानून और वृद्धों की स्थिति

  -नरेन्द्र देवांगन जीवन का उत्तरार्द्ध ही वृद्धावस्था है। वस्तुत: वर्तमान की भाग दौड़, आपाधापी, अर्थ प्रधानता व नवीन चिंतन तथा मान्यताओं के युग में जिन अनेक विकृतियों, विसंगतियों व प्रतिकूलताओं ने जन्म लिया है, उन्हीं में से एक है युवाओं द्वारा वृद्धों की उपेक्षा। वस्तुत: वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्योन्य व्यथाओं को लेकर ...

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बुढ़ापा रोग नहीं है

  -विद्युत प्रकाश मौर्य बुढ़ापा यानी रिटायरमेंट कोई रोग नहीं बल्कि यह तो एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत है। अगर आप नौकरी से रिटायर होने वाले हैं तो कई तरह की योजनाएं बनाइए। कुछ लोग नौकरी से रिटायर होते ही दु:खी हो जाते हैं कि अब मैं क्या करुंगा। मैं एक 74 साल के आदमी से मिला। वह एक प्रॉपर्टी ...

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समय का सदुपयोग

-लीना कपूर ‘क्या बताऊं? जब से बाबू जी रिटायर होकर घर आए हैं, हर काम में दखलअंदाज़ी करते रहते हैं।’ ‘मेरे ससुर को तो बस एक ही काम है। बिस्तर पर लेटे-लेटे हर वक़्त सिगरेट से धुएं के छल्ले उड़ाते रहना।’ ‘पिता जी, कभी बाहर भी घूम-फिर लिया करें। हर वक़्त टी.वी. के सामने बैठे रहना ठीक नहीं।’ किसी न ...

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