साहित्य सागर

नव वर्ष मुबारक

नव वर्ष की पहली किरण चूमे जब धरती का शबाब उड़ जाए दुःखों की ओस महक उठें खुशियों के गुलाब मचल उठे हर कली का दिल भंवरा गाए कोई ऐसा राग थम जाए नफ़रत की आंधी टिम-टिमाएं मुहब्बत के चिराग

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नये साल की ग़ज़ल

दुआ हो कि हर कोई खुशहाल हो मुबारक सभी को नया साल हो खिलें फूल खुशियों के चारों तरफ़ शगुफ्ता चमन की हर एक डाल हो महल में भी खुशियों की गंगा बहे कोई झोपड़ी भी न पामाल हो

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शब्द चितेरा

ग़र होता मैं शब्द-चितेरा, कोई बात न्यारी लिखता होरी की दुख गाथा लिखता, धनिया की लाचारी लिखता बाप-बेटे या भाई-भाई में, रिश्ते आख़िर बिखरे क्यों धन-बल-सत्ता की ख़ातिर, क्यों हो रही मारामारी लिखता

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समीक्षा

आइए गत वर्ष की समीक्षा करें क्या खोया क्या पाया या एक वर्ष आपने यूं ही गंवाया अगर अपने कोई प्रगति न की हो अपने कार्यों में

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क़लम

मैं क़लम नहीं गुनहगार हूं बन्दिशों में जकड़ी हुई तलवार हूं तने सफ़ेदपोश मुझ से नज़र छुपाते हैं मेरे पांव में धन-दौलत लुटाते हैं।

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बेवफ़ा कौन

उसके आंसुओं को देखकर दिल के दूर किसी कोने में जैसे किसी जीत के अनुभव की खुशी की आवाज़ आ रही थी।"मैं बहुत बुरी हूं सागर".... लेकिन तुम भी कम बुरे नहीं हो। मेरी नासमझी की सज़ा देने के लिए तुमने

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सारी जनता है परेशान मीयां

नोटों की अदला-बदली में सारी जनता है परेशान मीयां बूढ़े-बूढ़ियां खड़े लाईनों में सारी जनता है परेशान मीयां आठ नवम्बर से नोट बन्दी का हो गया फरमान मीयां रातो-रात यह फ़ैसला सुनकर सारी जनता है परेशान मीयां

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पुलिस का डंडा चलता है

सूरज चढ़े ही खड़े लाईन में शाम का सूरज ढलता है नोट लेने गई भीड़ पर पुलिस का डंडा चलता है आम आदमी परेशान हो रहा नोट नहीं बदलता है मंत्री जी का बिना लाईन के झट से नोट बदलता है

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चार दीवारी

चार दीवारी की सोच दफ़न कर देती है नया कर पाने की उम्मीद कुएं के मेंढक की परछाई घुमाती रहती है सुइयों को उन्हीं घिसी पिटी राहों पर उसी थकी हारी चाल से क़दमों का वही सीमित-सा सफ़र

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