एक भौंरा गुलबदन को चूम कर फिर उड़ गया। एक भौंरा था जो ज़िद्दी गुलबदन पर अड़ गया।। हम भला रोने लगे क्यों इक मुसाफिर था गया। वो तो झोंका था हवा का आंख में कुछ पड़ गया।।
Read More »साहित्य सागर
कबाड़ उठाती लड़कियां
पांच छ जन के समूह मेें जा रही हैैं वे लड़कियां राष्ट्रीय राजमार्ग के एक ओर रंग बिरंगे पुराने से कपड़े पहने
Read More »क़लम की व्यथा कलम की ज़ुबानी
मैं कल तक इसी मनुष्य की उंगलियों की गु़लाम थी। इसी के ईशारों पर नाचती रही। अतः जैसा यह नचाता रहा, वैसे मैं नाचती रही।
Read More »गणेश न मिले रे पूजन को गणेश
‘गणेश जी। आप यहाँ। मैं आप को मारा-मारा फिरता हुआ कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ रहा था। कम से कम मन्दिर में तो रहा करो नाथ।‘मन्दिर में? तुम रहने दो तब न।’
Read More »हक़ीक़त तलाशते स्वप्न
घर में आज क़ोहराम मचा हुआ था। रौशनी घर से भाग चुकी थी। अब रेखा को रौशनी की पिछले कल बताई गई हर बात का मतलब समझ आ चुका था।
Read More »सूरज की तलाश
नहीं जानती, उगा होगा, किसी अनजाने देश में, सतरंगी सूरज। इन्द्रधनुशी आभा से खिला होगा, प्रकृति का कण-कण।
Read More »उसकी आंखें
उसकी शर्माती आंखों में है अदम्भ साहस भी क्योंकि उसने कभी नहीं माना कि शर्म का पर्यायवाची डर होता है उसकी सकुचाती आंखों में अधूरापन भी है
Read More »नए वर्ष का प्रवेश द्वार
जी हां, सबकी रग-रग में बस चुका, मैं हूं भ्रष्टाचार। नववर्ष में भी बढ़ेगा अभी मेरा परिवार। झट से खोलो द्वारपाल, मेरे लिए नववर्ष का द्वार।’
Read More »नयी जन्मी बच्ची के नाम
खुशामदीद! ए नन्हीं बच्ची तेरी आमद ने मेरे मन को जहां तृप्त किया है वहां बहुत कुछ सोचने के लिए
Read More »मौसमौं में घुल गई शैतानियां
रात को थोड़ी-सी देकर रौशनी चांद ने कर ली हैं ऊंची हस्तियां जानता हूं मैं इन्हें अच्छी तरह डूब कर उभरी हैं यह सब कश्तियां
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