साहित्य सागर

काल्पनिक नज़रें

मैं उसी सेल्ज़गर्ल के बारे में सोच रहा था, ज़्यादा उम्र नहीं थी उसकी, गज़ब की सुन्दर थी वह। दोस्तों की क्या मैंने स्वयं अपनी नज़रों को उसके शरीर पर थिरकते महसूस किया था। वह कभी-कभी हमें रंगे हाथों पकड़ लेती तो ‘झेंप’ जाती।

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बर्फ और पहाड़ की कविता

ऊंचे देवदारों की फुनगियों पर फिर सफे़द फाहे चमकने लगे हैं सफे़द चादार में लिपटे पहाड़ फिर दमकने लगे हैं। पगडंडियों पर पैरों की फच फच से उभर आये हैं गहरे काले निशान

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पोस्ट स्क्रिप्ट

‘वह देश भी इसी देश जैसा है। वहां भी लोग मक़बरे में रहते हैं,’ मित्ती हंसी, उसकी हंसी में बहुत कांटे थे। वह बोली, ‘जानते हो? ... हमारी ही तरह वे लोग भी नहीं जानते कि जहां वे रहते हैं वो घर नहीं। बस अपनी तरह वे भी रह ही लेते हैं।

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तेरा वजूद

खूबसूरत ख़्वाबों की ताबीर सा तेरा वजूद आंखों में लिए मैं जीवन के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलती रही और लड़ती रही युद्ध हर पल, हर क्षण

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नारी

न पूज्य बनो न पुजारी हो तुम नारी ही रहो, बस नारी हो तुम। सजधज न कुन्तल बिखराओ यह नयन चपल मत मटकाओ। फ़ैशन की होड़ को रोको तुम इस अंधी दौड़ को रोको तुम।

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सिलसिला

कितनी बार टूटकर बिखरते हैं हम कितनी बार बिखर कर सिमटते हैं हम कि ये सिलसिला एक दिन नहीं दो दिन नहीं ताउम्र चलता है

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तेरा चेहरा

दिल लुभाता है, बड़ा भाता है तेरा चेहरा। दिल में समाया है, समाया ही जाता है तेरा चेहरा।

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एक बार और

इसने कहा कि तुम सिर्फ़ बीवी बनकर रह गई हो इसीलिए सब गड़बड़ है। बस, फिर मैंने अपने आप को तोला तो मुझे लगा कि बात सही है। तब से मैंने अपने आपको बदलना शुरू कर दिया।

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गीले दस्ताने

एक आशंका और बलवती होती गई कि ... कहीं हरेश के साथ ही तो हादसा...? थोड़ी ही देर में मेरा अनुमान वास्तविकता में बदल गया जब परेश के बाऊजी ने हौले से मुझे पूछा

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