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पढ़ाई

आज दिव्या दोपहर में अपने कमरे में गई, लेकिन अभी शाम के 8 बजने को आये, बाहर नहीं निकली। ये बच्ची हमारे पड़ोस में ही रहती है। मैं अपना काम निबटाकर बाहर निकली तो उसकी मम्मी से राम सलाम हुई। वो मुझे आज कुछ खिन्न सी नज़र आई।

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पारो खुश है

मैं कुछ क़दम पीछे लौट उन आवाज़ों को सुनने लगी जिन्होंने मुझे हिलाकर रख दिया था।'हमारे खानदान पर कलंक है यह पारो।' 'पैदा होते ही मर क्यों न गई।' उसके मायके के आंगन में गूंजती ये आवाज़ें अब पारो के मन से टकराती होंगी तो उसे कैसा-कैसा लगता होगा।

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निर्णय

उसके बापू ने उससे पूछा कि क्या हुआ। पर बोली कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। बिना कहे सब स्पष्ट तो था...। ‘तन पर कपड़े पूरे नहीं पड़ रहे थे। जिन हाथों में रोटी थमी थी, उन्हीं हाथों से अब तन ढांपने का काम लिया जा रहा था। सिर से चुनरी उड़ चुकी थी।

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यात्रा पर जाने से पहले- कुछ ज़रूरी टिप्स

होटल में ठहरने से पहले उसकी शर्तों को ठीक तरह से समझ लें। भीड़-भाड़ के दिनों में पहले से ही होटल में आरक्षण कराकर चलें तो अच्छा होगा। अगर किसी हिल स्टेशन पर आपके विभाग की ओर से होटल या गेस्ट हाउस बनाया गया हो तो उसी में ठहरें।

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वर्कशॉप का वाक़या

गुणा मोटर मैकेनिक है। गुणा आज परेशान है। डाकिया उसे एक चिट्ठी थमा गया है। शिक्षा विभाग के निदेशक की ओर से यह चिट्ठी आई थी। लिखा था, ‘नवसाक्षर सरल लेखन पुस्तक निर्माण दस दिवसीय कार्यशाला नैनीताल में है। आप सादर आमंत्रित हैं।’

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चक्कर दोस्ती का

दोस्त अच्छा हुआ तो आप को बना सकता है, ख़राब हुआ तो बिगाड़ सकता है। यह बात लड़के-लड़कियों दोनों पर आधारित है और दोस्ती समलिंगी हो या विषम-लिंगी, दोनों में सच है।

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डेटिंग से डेज़ी़ी चेन तक

आधुनिकता की आंधी में पुराने महलों का ढहना लाज़मी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि इस आंधी में स्थिरता और अडिगता के लिए जो रास्ते इख़्तियार किए जा रहे हैं क्या वह आने वाले तूफ़ानों का सामना कर सकेंगे।

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बेटी जब बड़ी होने लगे

बेटियां आजकल यौन-उत्पीड़न के ख़तरे तले बड़ी होती हैं। ये ख़तरे अक्सर घर परिवार या जान-पहचान वालों की तरफ़ से आते हैं। माएं अपनी बेटियों को इनसे आगाह करके रखें, तो बहुत सारी समस्याएं तो पैदा नहीं होंगी।

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आज की बहू कभी सास भी तो होगी

अब देखिए न, खूसट (?) सास को इतना तजुर्बा हो तो हो पर वो बातें कहां मालूम जो पढ़ी-लिखी (!!) बहू को मालूम हैं। ये किट्टी पार्टियां, ये सिनेमा, शॉपिंग ज़रूरी (!) हैं। ऐसे में बूढ़ों की देखभाल की सिरदर्दी कौन झेले, ये ननद के नखरे, देवरों की अकड़ कौन झेले।

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जब जाएं मरीज़ का हाल पूछने

यह ठीक है कि आपसे अपने परिचित का दुःख देखकर रुका नहीं जाता और आप उसका हाल जानने व उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ देने की ग़रज़ से उसे देखने अस्पताल चले जाते हैं। पर इसका यह मतलब कत्तई नहीं है कि आप उसे मानसिक कष्ट पहुंचाएं।

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