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घर, घरवाला, घरवाले

-दीप ज़ीरवी घ + र = घर। मात्र शब्द जोड़ नहीं है घर। मकान बनाने में, कोठी-बंगला बनाने में तो मात्र कुछ माह अथवा कुछ बरस लगते हैं। घर बनाने में पुश्तें लग जाती हैं। स्नेह + सामंजस्य + संस्कार = संस्कृति, संस्कृति + संस्कारित सदस्य = घर परिवार। इनमें से एक भी तत्त्व के अभाव में घर अपूर्ण है अर्थहीन है। घर पीढ़ी दर ...

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क किताब बनाम क कम्प्यूटर

  -धर्मपाल साहिल किताबें इन्सान की सब से अच्छी दोस्त होती हैं। जब आपके साथ कोई न हो तब एक अच्छी किताब आपका बसा-बसाया संसार सिद्ध होती है। दुनियां भर का समस्त इतिहास, संस्कृति, दर्शन, यहां तक कि हर क़िस्म का ज्ञान किताबों में संरक्षित और सुरक्षित है तथा किताबों द्वारा ही पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक पहुंच रहा ...

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क्यों कांपती हैं गृहस्थ की दीवारें

-गोपाल शर्मा फ़िरोजपुरी घर समाज की प्रथम इकाई है। घरों से मुहल्ला, मुहल्लों से गांव और गांवों से शहरों और नगरों का निर्माण होता है। घर एक ऐसा सुन्दर स्थान होता है जहां मनुष्य स्वयं को सुखद और आनंदित अनुभव करता है। मनुष्य ही नहीं अपितु जीव-जंतु, पशु-पक्षी भी अपने-अपने घरों और घौंसलों में स्वयं को सुरक्षित मानते हैं। एक घर ...

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मैरेज काउंसिलिंग

-डॉ. सन्त कुमार टण्डन रसिक प्रेम-विवाह हो, अरेंज्ड मैरेज हो, अकसर शादी के बाद विच्छेद भले न हो, पर मिठास कम हो जाती है, कड़वाहट भरने लगती है। इससे यही साबित होता है कि शादी के पूर्व और बाद में भी मैरेज काउंसिलिंग की ज़रूरत होती है। इससे विवाह अच्छे और सफल होते हैं, बिगड़ी बातें बन जाती हैं, संबंध ...

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भावी पति-पत्‍नी में डेटिंग कितनी आवश्यक

विवाह जीवन का एक ऐसा अटल मोड़ है जो प्रत्येक व्यक्‍ति के जीवन में देर या सवेर आकर रहता है। वैवाहिक बन्धन में बन्धने से पूर्व सगाई की रस्म निभाई जाती है। सगाई से लेकर विवाह तक का अन्तराल एक ऐसा नाज़ुक दौर है जिस पर वैवाहिक जीवन की क़ामयाबी या नाक़ामयाबी टिकी होती है। सगाई की रस्म के साथ ...

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पति-पत्‍नी का रिश्ता दो दिलों का अटूट बंधन

दुनियां के सभी रिश्तों से सर्वोपरि माना जाने वाला रिश्ता है पति-पत्‍नी का रिश्ता। पति-पत्‍नी का रिश्ता इतना महत्वपूर्ण होता है कि दोनों अपने इष्‍ट देव को साक्षी मान कर जीवन भर साथ निभाने का वायदा करते हैं। जब एक लड़की दुलहन बन कर पति के घर में आती है तो वहां का सब कुछ उसके लिए नया और अनजाना होता ...

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शोकग्रस्त परिवार अथवा व्यक्‍ति के प्रति हमारा आचरण

-सरिता सैनी करीब 15 वर्ष पहले मेरी माता जी का देहांत हो गया और उसके बाद 5 वर्ष पहले मेरी नवजात बेटी का देहांत हुआ। दोनों ही क्षण बेहद दु:खदायी थे। मानों, एक पल में ही संसार ख़त्म हो गया हो। इन दु:खों का सामना करने के लिए मैं मानसिक तौर पर कदापि तैयार नहीं थी। दोनों ही क्षण अचानक ...

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परिक्रमा

“रवि, तुम्हारा जो भी मेरे पास था मैं गंवाना नहीं चाहती थी, अब तुम सब नये सिरे से भी तो बना सकते हो।”

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