-दीपक कुमार गर्ग पत्नियां हमेशा यह कामना रखती हैं कि पति उनके साथ हमेशा ईमानदार बना रहे। सदा सच बोले, कभी भी झूठ न बोले। परन्तु कड़वा सच सुनने की पत्नियों की आदत नहीं होती। पतियों के लिए ज़रूरी है कि पत्नियों के साथ नासमझी करके अपने घर को युद्ध का मैदान न बनाएं। बातचीत में संतुलन बनाए रखें। मैं ...
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इस ज़िंदगी में
बापू का देश
– डॉ. अनामिका प्रकाश श्रीवास्तव “तुम भी किस ज़माने की बात करते हो, सुखी? अरे अब ये सब बातें छोड़ो, ये सत्य, ये अहिंसा, ये सदाचार, ये नैतिकता, ये सब बुज़दिलों की बातें हैं। वो ज़माना गुज़र गया जब लोग इनके बल पर ही समाज में ...
Read More »श्रीमान नायक
-अरविंद कौन नायक बनना नहीं चाहता? यह दबी-सी इच्छा तो सब की होती है। ऐसी इच्छा मुझ में भी जागी थी जब मुझे शुरू-शुरू में नायक की परिभाषा का पता चला था। “श्रीमान नायक” मैं अभी सातवीं–आठवीं का ही छात्र था। पंकज और प्रताप दोनों मेरे दोस्त थे। हम तीनों साथ घूमते–फिरते और एक बैंच पर ही बैठते। हम में ...
Read More »सुगंध
-डॉ राज बुद्धिराजा वह एक अनोखा विवाह था। हमारे जैसे दस-बीस लोगों को छोड़ कर सभी बाराती-धराती मूक-बधिर थे। टेंट वालों, बिजली वालों, कैमरा-वीडियो वालों और खाना बनाने वालों से लेकर-परोसने वालों तक। युकलिप्टस से घिरे जगमगाते मैदान की शांति को शहनाईवादन और हमारी अनुशासित हंसी भंग कर रही थी। सभी अपनी उंगलियों, हथेलियों, नेत्रों, होंठों की संकेती भाषा से ...
Read More »भूख
-डॉ.रामनिवास ‘मानव’ वह आदमी है या जीवित पहेली, कहना मुश्किल है औरों की तो बात छोड़िये, पूरे पांच साल सिर खपाने के बाद, पत्नी भी उसके स्वभाव को समझ नहीं पाई। ...
Read More »पत्नी का भविष्य
-डॉ. रामनिवास ‘मानव’ पति ने नववर्ष पर ‘हिन्दुस्तान’ में अपना वार्षिक भविष्य-फल देखने के बाद पत्नी से पूछा – ‘‘तुम्हारी राशि क्या है ?” “तुला, क्यों ?” “तुम्हारा वार्षिक भविष्य देखना है।” “मुझे बिना देखे ही पता है।” “कैसे ?” “इस में कैसे की क्या बात है! शादी के बाद पिछले दस वर्ष जैसे बीते हैं, वैसे ही बीतेगा यह ...
Read More »इंसाफ़ के मन्दिरों में, ये दर्दनाक मंज़र
“विपक्ष के वकीलों का आपस में मिल जाना, वकीलों द्वारा अनपढ़ मुवक्किलों से ग़लत ब्यानों पर हस्ताक्षर करा लेने तथा केस कमज़ोर कर देना।
Read More »कन्यादान एक महत्वपूर्ण प्रश्न
“मनुष्य को मनुष्य के दान का कोई अधिकार नहीं। दानी की भावना ही दो आत्मीय संबंधों के बीच कड़वाहट भर देती है।
Read More »लुप्त होता वैंप का स्वरूप
“हिन्दी सिनेमा में वैंप तो अब कल की कहानी हो गई है। जैसे-जैसे हीरोइन्ज़ खुलती गईं, बोल्ड होती गई वे वैंप के रोल को निगल गईं।
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