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मगर

वो शोख़ हवाएं वो पत्तों की सरसराहट फूलों की भीनी-भीनी खुशबू वो भौंरो की गुनगुनाहट मेरा चौंक जाना सुनकर किसी की पदचाप वो पहाड़ की पगडण्डी के किनारे तुम्हारा छोटा सा घर

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अधिकार

मैं स्वतन्त्र हूं, स्वाधीन हूं, आजा़द हूं मुझे संविधान कुछ मौलिक अधिकार देता है भिन्न-भिन्न प्रकार की विभिन्नताओं, विविधताओं और असमानताओं के बीच समानता का अधिकार

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तसवीर

एक तसवीर जो मैंने बनाई उसमें रंग नहीं थे आकृतियां नहीं थी जज़बात नहीं थे इस लिए वह मूक थी

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राजनीति का हलवा

आने वाले इलेक्शन की कुछ ऐसी ही तैयारी है रूठा कोई है, कोई मनाता और कहीं समझौता है देख रहे हैं दलबदलू किसको कहां पर मौक़ा है? कौन कहां पर हुआ है आऊट किस को मिल गया चौका है?

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आओ चुनाव-चुनाव खेलें

-विद्युत प्रकाश मौर्य बचपन में आईस-पाईस खेलते थे पर अब उनका महत्वपूर्ण शगल बन गया है चुनाव-चुनाव। जल्दी-जल्दी चुनाव न हो तो नेता जी का मन नहीं लगता है। उनका बस चले तो वे हर साल चुनाव करवाते रहें। इससे क्या होगा जनता वोट देने में ही उलझी रहेगी फिर रोटी कैसे मांगेगी। लिहाज़ा उन्होंने पांच साल पूरे करने का ...

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जय हो

जय हो, जय हो, जय हो हिमगिरि और रेगिस्तान पूर्वांचल और दक्कनमान नदियां जिसकी शोभा बढ़ाएं ऐसा भारत का मैदान केरल से कश्मीर तक भारत के भूभाग की जय हो, जय हो, जय हो

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साक्षात्कार सन् 2017 का

-बलदेव राज ‘भारतीय’ 22 दिसम्बर की रात। सर्दी अपने पूरे यौवन पर थी। श्रीमती जी एवं बच्चे सो चुके थे। चूंकि आज मेरा जन्मदिन था और इस अवसर पर मैंने अपने कुछ साहित्यकार मित्रों को आमंत्रित किया हुआ था। उन सब के खान पान का रूखा सूखा इंतज़ाम श्रीमती जी के ज़िम्मे था। एक अच्छे पति की भांति मैं भी ...

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नव वर्ष मुबारक

नव वर्ष की पहली किरण चूमे जब धरती का शबाब उड़ जाए दुःखों की ओस महक उठें खुशियों के गुलाब मचल उठे हर कली का दिल भंवरा गाए कोई ऐसा राग थम जाए नफ़रत की आंधी टिम-टिमाएं मुहब्बत के चिराग

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शब्द चितेरा

ग़र होता मैं शब्द-चितेरा, कोई बात न्यारी लिखता होरी की दुख गाथा लिखता, धनिया की लाचारी लिखता बाप-बेटे या भाई-भाई में, रिश्ते आख़िर बिखरे क्यों धन-बल-सत्ता की ख़ातिर, क्यों हो रही मारामारी लिखता

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समीक्षा

आइए गत वर्ष की समीक्षा करें क्या खोया क्या पाया या एक वर्ष आपने यूं ही गंवाया अगर अपने कोई प्रगति न की हो अपने कार्यों में

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