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आज भी असहाय है नारी एक कटु सत्य

-बलवीर बाली भारतीय नारी की सदा यह विशेषता रही है कि भारतीय पुरुष समाज तथा नारी समाज में नारी अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति की मानी गई है। यद्यपि धार्मिक भावना दोनों में प्रबल रूप से विद्यमान् है। कहते हैं न जैसे हर सफल पुरुष के पीछे स्त्री का हाथ होता है ठीक उसी प्रकार यद्यपि सभी धार्मिक कार्य पुरुष समाज द्वारा ...

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मरी हुई तितलियां

जब हम चले तो बहुत से लोग थे। तब जंगल अभी इतना घना नहीं था। एक-दूसरे के साथ हँसी मज़ाक करते हुये हम ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहे। पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां तोड़ते, उंगलियों में मसलते हुये हम चलते रहे। लगता था हमने सारी उम्र इसी तरह चलना है। जंगल धीरे-धीरे घना होता गया। हम एक-एक करके गुम होते रहे। उन में ...

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सोचें वक़्त से पहले

-एसः मोहन वैसे तो हमारे समाज में लड़की पैदा होना ही मां-बाप को एक बोझ का अहसास कराता है। लड़की पैदा करने की हीन भावना शनैःशनैः लड़की के साथ-साथ बढ़ती जाती है। लड़की के जवान होते ही मां-बाप की आपाधापी चरम सीमा पर पहुंच जाती है। फलतः मां-बाप बिना सोचे समझे ऐसे धोखे का शिकार हो जाते हैं जिसका प्रायश्‍च‍ित ...

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शादी के बाद क्यों महत्त्व देती हैं महिलाएं नौकरी को

-आकाश पाठक आधुनिक समाज में क़दम-दर-क़दम हो रही प्रगति से जहां महिलाओं को विचारों में, घूमने-फिरने में आज़ादी मिली है, वहीं यह तथ्य भी स्पष्‍ट होता जा रहा है कि महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी को प्राथमिकता देती हैं या दे रही हैं। भले ही उनके पतियों की मासिक आय एवं पारिवारिक परिस्थितियां सुदृढ़ क्यों न हों। मगर आधुनिक ...

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अधिकारों के प्रति सजगता से ही थमेगा नारी का अग्नि परीक्षा का दौर

-मुनीष भाटिया स्वतंत्रता के अड़सठ वर्ष बाद जब देश की महिलाओं की दशा पर दृष्‍ट‍ि डाली जाती है तो सहसा सामने वह रोगी आ खड़ा होता है जिसे शुरू में तो कोई एकाध रोग ही था किन्तु परिचारकों के प्रसाद एवं समीचीन औषधि के अभाव में रोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। जिस राष्‍ट्र में कभी नारी की साड़ी उतारने का ...

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ये कहां आ गए हम

-दीप ज़ीरवी अबाध निःशब्द निरंतर गतिमान समय सरिता की धारा के संग बहते-बहते कई संवत्सर निकले, कई युग बीते, कई जन, जन-नायक बनकर उभरे और विलीन हो गए। समय सरिता का एक और मोड़ आया 2015 का जाना एवं 2016 का आना। 2015 को जाना था वह गया एवं 2016 आना था, 2016 के शैशव काल में काल के कराल में ...

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हमसफ़र ग़र हमराज़ न हो तो

-नील कमल ‘नीलू’ ज़िंदगी के सफ़र की मुख़्तलिफ़ राहों पर, मुख़्तलिफ़ मुक़ामों पर कहीं न कहीं किसी हमराज़ की ज़रूरत अकसर पेश आ ही जाती है। क्योंकि अगर अपने राज़ दिल के अंदर ही दबा लिए जाएं, तो वो राज़, राज़ नहीं रहते बोझ हो जाते हैं। दिल की हर बात हर राज़ कभी न कभी, किसी न किसी के ...

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