मुझे बहुत खुशी है कि तुम इस राह पर नहीं चले और कभी चलना भी न। यही बहादुरी है। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद आदमी तनावग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है और भटका हुआ आदमी चाहे बाहरी रूप में सही सलामत नज़र आए, पर वास्तव में होता नहीं।
Read More »December 28, 2015 Leave a comment
मुझे बहुत खुशी है कि तुम इस राह पर नहीं चले और कभी चलना भी न। यही बहादुरी है। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद आदमी तनावग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है और भटका हुआ आदमी चाहे बाहरी रूप में सही सलामत नज़र आए, पर वास्तव में होता नहीं।
Read More »December 22, 2015 Leave a comment
-धर्मपाल साहिल आज से लगभग दो सौ साल पूर्व इंग्लैंड वासी चार्लस डार्विन ने जीव विकास का सिद्धान्त पेश कर दुनियां भर में तहलका मचा दिया था। उनके इस सिद्धान्त को दुनियां भर के स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा है और पूर्ण मान्यता भी मिली है। डार्विन का सिद्धान्त “प्राकृतिक वर्ण” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। डार्विन ने कई प्रयोगों ...
Read More »December 21, 2015 Leave a comment
-जसबीर चावला इस संसार में हर प्राणी प्रशंसा और प्यार का भूखा है। बचपन में मां-बाप का लाड़-दुलार, शिक्षकों, गुरुजनों का स्नेह, दोस्तों-हमजोलियों का साथ, मनुष्य के व्यक्तित्व (पर्सनैलिटी) के विकास के लिये बहुत ज़रूरी है। जवानी में जीवन-साथी का प्रेम इसीलिए यौन-संतुष्टि से ज़्यादा मायने रखता है और शायद इसीलिए पति-पत्नी का संबंध दोनों से विशेष ध्यान की ...
Read More »December 19, 2015 Leave a comment
शादी के बाद पहली बार रीना घर रहने आई। बड़ी मुश्किल से दस दिन रहने की अनुमति मिली थी। घर पहुँचते ही उसकी निगाहें माँ के कमरे, घर के कोने-कोने पर घूमने लगी। मैं हैरान थी ऐसा क्यूँ? कुछ देर बैठकर उसने मेरे कमरे का कोना-कोना झाड़ दिया। परदे निकाल कर दूसरे बदल दिये। हर चीज़ साफ़ कर दी। मुझे ...
Read More »December 19, 2015 Comments Off on टैलीवुड भी चल निकला बॉलीवुड की राह
बॉलीवुड सदैव ही दर्शकों के दिलों में समाया रहा है। फ़िल्मी सितारों का उन पर सर्वाधिक प्रभाव रहा है। पृथ्वी राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक का फ़िल्मी सफ़र अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है। पृथ्वी राज कपूर द्वारा अभिनीत मुग़ल-ए-आज़म आज भी सभी की पसंदीदा फ़िल्म है। पृथ्वी राज कपूर ने मुग़ल-ए-आज़म अकबर के रूप ...
Read More »December 18, 2015 1 Comment
-शबनम शर्मा हम पिछले सप्ताह ट्रेन में सफ़र कर रहे थे, हमें नीचे की 2 सीटें मिली थी और सामने वाली में एक छोटा सा परिवार बैठा था। पति-पत्नी और नन्हीं सी बालिका। देहरादून से गया तक वो भी हमारे हमसफ़र थे। बच्ची 2-2½ साल की थीे। कभी अपनी वाली खिड़की में तो कभी मेरे वाली। जिस तरफ़ भी प्लेटफार्म ...
Read More »December 14, 2015 2 Comments
December 14, 2015 1 Comment
December 14, 2015 Leave a comment
-दीप ज़ीरवी घ + र = घर। मात्र शब्द जोड़ नहीं है घर। मकान बनाने में, कोठी-बंगला बनाने में तो मात्र कुछ माह अथवा कुछ बरस लगते हैं। घर बनाने में पुश्तें लग जाती हैं। स्नेह + सामंजस्य + संस्कार = संस्कृति, संस्कृति + संस्कारित सदस्य = घर परिवार। इनमें से एक भी तत्त्व के अभाव में घर अपूर्ण है अर्थहीन है। घर पीढ़ी दर ...
Read More »December 10, 2015 Leave a comment
-धर्मपाल साहिल किताबें इन्सान की सब से अच्छी दोस्त होती हैं। जब आपके साथ कोई न हो तब एक अच्छी किताब आपका बसा-बसाया संसार सिद्ध होती है। दुनियां भर का समस्त इतिहास, संस्कृति, दर्शन, यहां तक कि हर क़िस्म का ज्ञान किताबों में संरक्षित और सुरक्षित है तथा किताबों द्वारा ही पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक पहुंच रहा ...
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