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खूंटी से बंधी नारी

यदि कहीं प्रेम-क्रीड़ा में असफलता मिली तो झट प्रेमिका का गला घोंट कर हत्‍या कर डाली। ये इकीसवीं सदी के कायर प्रेमी संकल्प और संघर्ष की नदी पार क्यों नहीं कर सकते। जिस समाज में इतने बुज़दिल युवा पुरुष, पल-बढ़ रहे हों, वह समाज यक़ीनन भीतर से जर्जर व खोखला होगा।

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स्त्री का जीवन एक कसौटी

  –शैलेन्द्र सहगल अकसर यह कहा जाता है कि दुनिया के सारे मर्द जोरू के गु़लाम होते हैं। क्या वास्‍तव में ऐसा है ? विवाह पूर्व जिसे मर्द दिल की रानी समझता है, उसके घर में अवतरित होते ही वह रानी से नौकरानी में कैसे तबदील हो जाती है ? ऐसा उन औरतों के साथ होता है जो भारतीय नारी ...

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कन्यादान उचित या अनुचित

     –गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जो लोग भूतकाल और वर्तमान में डूबे रहते हैं सम्भवत: भविष्य को खो देते हैं। समय की आवश्यकताओं के अन्तर्गत परिस्थितियों के अनुकूल मानव प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। पुरातत्व से नया अनुसंधान करना यश और कीर्ति को सूचित करता है-पुरानी परम्पराओं को जीवित रखना जहां आवश्यक है वहां ...

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नारी पर नग्नता के आरोपों से आख़िर क्या साबित होगा

-गोपाल शर्मा ‘फिरोज़पुरी’ प्रकृति ने अपनी रचना में स्त्री-पुरुष को बराबर बनाया है, परन्तु सदियों से पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की बराबरी उसे असहनीय है। सदियों से पर्दे में लिपटी नारी ने उस प्रथा के विरोध में चुनौती दी है तो पुरुष तिलमिला उठा है। अश्‍लीलता और नग्नता जैसे आरोप नारी पर लगने लगे हैं। शिक्षा के विकास के ...

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वेश्यावृत्ति नारी जाति पर कलंक है

– शैलेन्द्र सहगल औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया। अबला नारी तेरी अजब कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। वक्‍़त बदल गया दुनिया बदल गई। नहीं बदली तो औरत के वजूद से जुड़ी यह स्थितियां नहीं बदली। वो देवदासी भी बनी तो भी देह उसे परोसनी पड़ी, देह व्यापार का कलंक मानव सभ्यता ...

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औरत को इंसान होने का अहसास जगे तो

   -शैलेन्‍द्र सहगल हमारे बुज़ुर्ग अक्सर यह कहते आए हैं कि बेटियां तो राजे महाराजे भी अपने घर नहीं रख पाए, शादी तो बेटी करनी ही पड़ेगी! गोया बेटियां बहू बनने के लिए ही पैदा होती हैं। जिस मां की कोख से वो जन्म लेती है उसके लिए भी अगर वो पराया धन ही रह जाएं तो इस जहां में ...

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किशोरावस्था- समय भटकने का या सम्भलने का?

  -जगजीत ‘आज़ाद’ बाल्यावस्था और युवावस्था के मध्य का समय जिसे किशोरावस्था कहा गया है हर इन्सान के जीवनकाल का क्रांतिकारी समय है। इसे अगर ज़िंदगी का चौराहा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि इस समय हर किशोर के सामने भावी मार्ग चुनने की उलझन होती है। यूं तो इस अवस्था में किशोर में बहुमुखी परिवर्तन आते हैं लेकिन ...

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बेटी की किताब में प्रेमपत्र

-कनु भारतीय   मेरे साथ वाले पड़ोसी के घर में शाम के पांच बजे चीखने-चिल्लाने व गाली-गलौच की तेज़-तेज़ आवाजें आ रही थीं। आस-पास की महिलाएं पहले तो उनके घर के बाहर इक्‍ट्ठी खड़ी रहीं फिर उनमें से अधिकतर यह कहकर बाहर से ही लौट गयीं कि यह उनके घर का मामला है। फिर भी चार-पांच औरतें हिम्मत करके अंदर ...

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युवा बेटी को दें दोस्ती का उपहार

  -विजय रानी बंसल याद कीजिए वो पल जब आपकी लाडली ने हौले से आपकी अंगुली को अपनी मुट्ठी में दबा लिया था। वो नन्हा, कोमल स्पर्श जो खुद को आश्‍वस्त-सा करता था जैसे-हां मम्मी-पापा मेरे पास हैं। आपसे बेहतर कौन है जो उसे सही-ग़लत में फ़र्क़ करना सिखाएगा, जो उसे विश्‍वास में ले उसके हित की बातें बताएगा और ...

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किशोरवय की समस्यायें

  -ज्योति खरे कहा जाता है कि किशोर मन कच्ची मिट्टी के समान होता है, इसे जिस रूप में ढालना चाहें, ढाल सकते हैं। हाईस्कूल से लेकर इंटर तक के विद्यार्थियों की अवस्था यही होती है। ढेर सारी समस्याएं इस अवस्था में पैदा होती हैं और अगर अभिभावक तथा शिक्षक विद्यार्थियों के साथ मिलकर इन समस्याओं को दूर नहीं कर ...

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