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कैमिस्ट्री ऑफ़ लव क्या है?

  -धर्मपाल साहिल प्यार के बारे में जितना मुंह उतनी बातें जितना कहा उतना थोड़ा। कोई कहे प्यार अंधा होता है, कोई माने यह किसी से भी, कहीं भी, कभी भी हो सकता है। न उम्र की सीमा, न जन्म का बंधन। किसी का विश्‍वास है प्यार किया नहीं जाता है। कोई इसे क़िस्मत का खेल तो कोई दिलों का ...

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स्वातंत्र्य आंदोलन में साहित्यकारों का योगदान

सुरेन्‍द्र सिंह चौहान काका सर्वप्रथम हम नमन करते हैं भारत के उन समस्त ज्ञात-अज्ञात शहीदों को जिन्होंने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये। स्वतंत्रता आन्दोलन भारतीय इतिहास का वह युग है जो पीड़ा, कराहट, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ...

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नम शब्दों की आबशार-दलीप कौर टिवाणा

मुझे अंदेशा-सा हुआ, जिसे मैं मिलकर आया था, शायद यह कोई दूसरी दलीप कौर थी। वहां दीवारों पर लटकती हुई पेंटिंगज़ नहीं थी। वहां पर न तो कोई काग़ज़ था और न ही कोई पैॅन।

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एक खुशबू थी अमृता प्रीतम

अमृता ने अपनी जीवन की अन्तिम कविता जो उसने 2002 में अपने हर पल के साथी इमरोज़ के लिए लिखी थी, में उससे अपने पुनर्मिलन की हार्दिक इच्छा यूं अभिव्यक्‍त की है:- “मैं तुझे फिर मिलूंगी कहां? कैसे? मालूम नहीं

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हरिवंश राय बच्चन

कल मुरझाने वाली कलियां हंस कर कहती हैं मग्न रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो

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हिन्दी में नारी स्वचेतना एवं सृजनात्मकता

-रमेश सोबती पुराने ज़माने में नारी को पूजनीय स्थान प्रदान किया गया था। स्त्रित्व-मातृत्व एवं देवत्व, इन तीनों को एक श्रेणी में रख कर सम्मान करना भारत की पारंपरिक संस्कृति है। भारत की प्राकृतिक संपदा और महत्व को हमारे पूर्वजों ने स्त्री के रूप में ही रखा, यहां तक कि उन्होंने विद्या के लिए ‘सरस्वती‘ को वन-संपत्ति के लिए ‘देवी-लक्ष्मी‘ ...

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यही तो प्यार है

  -मिलनी टण्डन रसिक प्रिया प्यार एक ऐसा जज़्बा है जिस पर नियंत्रण नहीं हो सकता। इसके भाव या चिन्ह चेहरे पर झलक ही आते हैं। आपके व्यवहार में भी परिवर्तन आ जाता है। इसे दूसरा पक्ष समझ लेता है। यही कि आप को उससे प्यार हो गया है। आप भी इन लक्षणों को समझें जो बताते हैं कि आपको ...

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बेटा-बेटी में असमानता कहां तक उचित

-मुकेश अग्रवाल रमेश के यहां लड़की होने का समाचार पाकर मैं उसके घर बधाई देने चला गया। उसके घर जाकर देखा तो वहां एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। रमेश की मां एक कोने में बैठी आंसू बहा रही थी तो स्वयं रमेश भी किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था। औपचारिकता की रस्म निभाने के बाद मैंने उदासी भरे ...

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औरत-कल, आज और कल

बड़े बड़े कवियों ने भी उसे त्याग की देवी का नाम दिया व उस से सिर्फ त्याग की ही अपेक्षा की। वे भूल गए कि यदि त्याग की देवी सीता वह है, तो चंडी भी वही है व झांसी की रानी भी वही है।

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अपनों ने जिन को लूटा

  -मंजुला दिनेश दुनिया कहां की कहां पहुंच गई। हम अपने आप को अति आधुनिक समझने लगे हैं। जहां एक तरफ़ हम स्वतंत्र सुरक्षित समाज का निर्माण कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ अभी भी आमतौर पर महिलाएं अपनी आबरू के कभी भी लुट जाने के भय से सदैव असुरक्षित महसूस करती दिखाई देती हैं। भले ही आज महिलाओं ने ...

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