साहित्य सागर

मरी हुई तितलियां

जब हम चले तो बहुत से लोग थे। तब जंगल अभी इतना घना नहीं था। एक-दूसरे के साथ हँसी मज़ाक करते हुये हम ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहे। पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां तोड़ते, उंगलियों में मसलते हुये हम चलते रहे। लगता था हमने सारी उम्र इसी तरह चलना है। जंगल धीरे-धीरे घना होता गया। हम एक-एक करके गुम होते रहे। उन में ...

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जीरांद

मुझे बहुत खुशी है कि तुम इस राह पर नहीं चले और कभी चलना भी न। यही बहादुरी है। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद आदमी तनावग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है और भटका हुआ आदमी चाहे बाहरी रूप में सही सलामत नज़र आए, पर वास्तव में होता नहीं।

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ससुराल

शादी के बाद पहली बार रीना घर रहने आई। बड़ी मुश्किल से दस दिन रहने की अनुमति मिली थी। घर पहुँचते ही उसकी निगाहें माँ के कमरे, घर के कोने-कोने पर घूमने लगी। मैं हैरान थी ऐसा क्यूँ? कुछ देर बैठकर उसने मेरे कमरे का कोना-कोना झाड़ दिया। परदे निकाल कर दूसरे बदल दिये। हर चीज़ साफ़ कर दी। मुझे ...

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वह युवक

-शबनम शर्मा हम पिछले सप्‍ताह ट्रेन में सफ़र कर रहे थे, हमें नीचे की 2 सीटें मिली थी और सामने वाली में एक छोटा सा परिवार बैठा था। पति-पत्‍नी और नन्हीं सी बालिका। देहरादून से गया तक वो भी हमारे हमसफ़र थे। बच्ची 2-2½ साल की थीे। कभी अपनी वाली खिड़की में तो कभी मेरे वाली। जिस तरफ़ भी प्लेटफार्म ...

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परिक्रमा

“रवि, तुम्हारा जो भी मेरे पास था मैं गंवाना नहीं चाहती थी, अब तुम सब नये सिरे से भी तो बना सकते हो।”

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