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ओ बटोही

ओ बटोही कविता पथ के कहां चला शब्दों का रथ ले भाव प्रवण कविताएं तेरी चपल-चपल ललनाएं तेरी गोरी के नूपुर-सी गुञ्जित भोर सुहानी जैसी सुरभित

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निर्णय

उसके बापू ने उससे पूछा कि क्या हुआ। पर बोली कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। बिना कहे सब स्पष्ट तो था...। ‘तन पर कपड़े पूरे नहीं पड़ रहे थे। जिन हाथों में रोटी थमी थी, उन्हीं हाथों से अब तन ढांपने का काम लिया जा रहा था। सिर से चुनरी उड़ चुकी थी।

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यात्रा पर जाने से पहले- कुछ ज़रूरी टिप्स

होटल में ठहरने से पहले उसकी शर्तों को ठीक तरह से समझ लें। भीड़-भाड़ के दिनों में पहले से ही होटल में आरक्षण कराकर चलें तो अच्छा होगा। अगर किसी हिल स्टेशन पर आपके विभाग की ओर से होटल या गेस्ट हाउस बनाया गया हो तो उसी में ठहरें।

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वर्कशॉप का वाक़या

गुणा मोटर मैकेनिक है। गुणा आज परेशान है। डाकिया उसे एक चिट्ठी थमा गया है। शिक्षा विभाग के निदेशक की ओर से यह चिट्ठी आई थी। लिखा था, ‘नवसाक्षर सरल लेखन पुस्तक निर्माण दस दिवसीय कार्यशाला नैनीताल में है। आप सादर आमंत्रित हैं।’

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चक्कर दोस्ती का

दोस्त अच्छा हुआ तो आप को बना सकता है, ख़राब हुआ तो बिगाड़ सकता है। यह बात लड़के-लड़कियों दोनों पर आधारित है और दोस्ती समलिंगी हो या विषम-लिंगी, दोनों में सच है।

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चिमटा

चिमटा ख़रीदने की सोच रही है मां पिछले कई दिनों से पर अक्सर ज़रूरतेंं बड़ी हो जाती हैं चिमटे से जलती हैं मां की अंगुलियां अक्सर रोटियों सेंकते हुए

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आज की बहू कभी सास भी तो होगी

अब देखिए न, खूसट (?) सास को इतना तजुर्बा हो तो हो पर वो बातें कहां मालूम जो पढ़ी-लिखी (!!) बहू को मालूम हैं। ये किट्टी पार्टियां, ये सिनेमा, शॉपिंग ज़रूरी (!) हैं। ऐसे में बूढ़ों की देखभाल की सिरदर्दी कौन झेले, ये ननद के नखरे, देवरों की अकड़ कौन झेले।

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जब जाएं मरीज़ का हाल पूछने

यह ठीक है कि आपसे अपने परिचित का दुःख देखकर रुका नहीं जाता और आप उसका हाल जानने व उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ देने की ग़रज़ से उसे देखने अस्पताल चले जाते हैं। पर इसका यह मतलब कत्तई नहीं है कि आप उसे मानसिक कष्ट पहुंचाएं।

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कन्या भ्रूण हत्या

मानव सभ्यता और संस्कृति में लड़कियां हज़ारों वर्ष आगे हैं। यही कारण है कि हम लड़की को देवी कहते हैं, लड़के को देवता नहीं कहते। परंतु अफ़सोस की बात तो यह है कि इतना सब जानते हुए भी कन्या भ्रूण हत्या क्यों?

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साहबे भक्ति कलियुगे

'कमाल है यार, बड़े कम दिमाग़ के हो। वे दफ़्तर के साहब हैं, चपरासी नहीं। साहब का दुःख सभी का होना चाहिए। साहब बीमार तो क़ायदे से पूरा दफ़्तर बीमार होना चाहिए। साहब परेशान तो क़ायदे से पूरा दफ़्तर परेशान दिखना चाहिए। साहब छुट्टी तो...'

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