Writers

ख़तरनाक साबित हो सकता है शर्मीलापन

-आकाश पाठक हमारी संस्कृति में शर्मीलापन विरासत में मिलता है यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। युवतियों में प्रायः शर्मीलापन अधिक होता है और इस क़दर समाया होता है कि यह उनकी ज़ंजीर बन जाती है। यह सही है कि शर्म नारी का गहना माना जाता है मगर यह भी उतना ही सही है कि आभूषण हर समय नहीं ...

Read More »

धत तेरे की

-धर्मपाल साहिल आज वह ऑफ़िस में रीना का सामना कैसे कर पाएगा। इस बात को लेकर वह सुबह से ही परेशान था। रात भी वह ठीक ढंग से सो नहीं पाया था। आधी रात को एक बार आंख खुली तो बस फिर नींद आंखों के पास न फटकी। करवटें बदलते सूरज चढ़ आया था। रोज़ाना की भांति ‘मॉर्निंग वाक’ के ...

Read More »

चाहत

तेरा चेहरा मासूमियत से भरा दुनियां की छल-कपट से दूर हृदय में प्यार तमन्नाओं का सागर एक ऐसा व्यक्तित्व जो एक आकर्षण रखता है

Read More »

कच्ची फ़सल

इस बार अपने हिस्से वाल ज़मीन पर अच्छी फ़सल होने के आसार नहीं हैं। पिता जी तो कुछ और ही राग आलाप रहे हैं..... समय से पूर्व फसल काटना धरती मां का अपमान है। धरती मां जैसा भी दे खुशी से स्वीकार करना चाहिए। अब तुम ही बातओ आजकल के ज़माने में ऐसी दक़ियानूसी बातें…..।"

Read More »

सपनों का राजकुमार

-बलबीर बाली जब सपना से उसके सपने के बारे में पूछा गया तो मुंह पर हाथ धर कर वो ऐसे दौड़ी जैसे पी.टी. उषा 100 मीटर की दौड़ दौड़ती है। हम यह सोचने लग पड़े कि आख़िर हमने ऐसा क्या पूछ लिया। जब हमने इस उलझन को अपनी मां से पूछा तो वह हंसने लगी और कहने लगी, बेटा.. वो ...

Read More »

इंतज़ार

'एक बार सुनाई नहीं देता। मेरी न मां है न बाप। तुम किसे मनाओगे? उस दानवी भाई को या फिर उस चुड़ैल जैसी भाभी को जिन्होंने पूरे घर को मेरे लिए एक जेल से भी बदतर बना दिया। पहले तो मार-मार कर मुझे अधमरा कर दिया और मेरा विश्वास न करके लोगों की बातों पर विश्वास करते रहे।'

Read More »

बेरोज़गारी के दिनों में निराश न हों

-माधवी रंजना आजकल जब कि रोज़गार की ज़्यादातर संभावनाए निजी क्षेत्रों में हैं। अक्सर लोगों को बेरोज़गारी का वक़्त देखना पड़ता है। एक वक़्त तो ऐसा होता है जबकि पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद रोज़गार की तलाश में होते हैं। वहीं जीवन में कई ऐसे मोड़ आते हैं जबकि एक नौकरी छूट जाने के बाद दूसरी नौकरी की तलाश करनी ...

Read More »

फ़िल्मी सितारों की ज़िन्दगी में ताक झांक

-सिमरन यूं तो मनोरंजन मीडिया का अहम हिस्सा है इस में कोई दो राय नहीं। लेकिन आज बाज़ारवाद के युग में मनोरंजन सर्वोपरि हो गया है। आज तो हर चीज़ पेश करते समय प्रतिस्पर्द्धा को ध्यान में रखा जाता है। जैसे ही न्यूज़ चैनल्ज़ का ज़माना आया समाचारों का रूप ही बदल गया। हर समाचार को मनोरंजक तरीक़े से पेश ...

Read More »