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शादी के बाद क्यों महत्त्व देती हैं महिलाएं नौकरी को

-आकाश पाठक आधुनिक समाज में क़दम-दर-क़दम हो रही प्रगति से जहां महिलाओं को विचारों में, घूमने-फिरने में आज़ादी मिली है, वहीं यह तथ्य भी स्पष्‍ट होता जा रहा है कि महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी को प्राथमिकता देती हैं या दे रही हैं। भले ही उनके पतियों की मासिक आय एवं पारिवारिक परिस्थितियां सुदृढ़ क्यों न हों। मगर आधुनिक ...

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सुखी दाम्पत्य जीवन आपसी तनाव मिटाएं

-सुमन कुमारी दाम्पत्य जीवन में मन-मुटाव तो होता ही रहता है। कुछ लोग अपनी गृहस्थी को अपने ही हाथों ख़त्म कर लेते हैं। पति-पत्‍नी को आपसी बातों को घर के अंदर ही निपटाना चाहिए। पति और पत्‍नी में तनाव बढ़ने के दो कारण आमतौर पर देखे जाते हैं। इनमें से एक तो है पत्‍नी का पति पर शक करना और ...

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अकेले हैं तो क्या गम है

-माधवी रंजना बदलते समाज में कई तरह की पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। किसी ज़माने में औरत को हमेशा किसी पुरुष के साथ ही संरक्षण की ज़रूरत होती थी। अब वह ज़माना नहीं रहा। इक्कीसवीं सदी में नारी की छवि मज़बूत होकर उभरी है। रोज़गार के कई नए क्षेत्रों में प्रवेश ने उसके आत्मसम्मान को बढ़ाया है। ऐसे में समाज ...

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अधिकारों के प्रति सजगता से ही थमेगा नारी का अग्नि परीक्षा का दौर

-मुनीष भाटिया स्वतंत्रता के अड़सठ वर्ष बाद जब देश की महिलाओं की दशा पर दृष्‍ट‍ि डाली जाती है तो सहसा सामने वह रोगी आ खड़ा होता है जिसे शुरू में तो कोई एकाध रोग ही था किन्तु परिचारकों के प्रसाद एवं समीचीन औषधि के अभाव में रोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। जिस राष्‍ट्र में कभी नारी की साड़ी उतारने का ...

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औरत पर अत्याचारों का सिलसिला कब ख़त्म होगा

-रीना चेची ‘बेचैन’ हर रात के बाद सवेरा होता है। ग़म के बाद खुशियां ज़रूर आती हैं। अंधेरे में गुम ज़िन्दगी का सामना एक दिन उजाले से होकर रहता है। मगर आज के माहौल को देखते हुए यह कुछ बेमतलब-सा लगता है। रात के बाद सुबह होती है तो सामना रक्‍तरंजित-ख़बरों से होता है – ख़ासकर महिलाओं के संबंध में। ...

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ये कहां आ गए हम

-दीप ज़ीरवी अबाध निःशब्द निरंतर गतिमान समय सरिता की धारा के संग बहते-बहते कई संवत्सर निकले, कई युग बीते, कई जन, जन-नायक बनकर उभरे और विलीन हो गए। समय सरिता का एक और मोड़ आया 2015 का जाना एवं 2016 का आना। 2015 को जाना था वह गया एवं 2016 आना था, 2016 के शैशव काल में काल के कराल में ...

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हमसफ़र ग़र हमराज़ न हो तो

-नील कमल ‘नीलू’ ज़िंदगी के सफ़र की मुख़्तलिफ़ राहों पर, मुख़्तलिफ़ मुक़ामों पर कहीं न कहीं किसी हमराज़ की ज़रूरत अकसर पेश आ ही जाती है। क्योंकि अगर अपने राज़ दिल के अंदर ही दबा लिए जाएं, तो वो राज़, राज़ नहीं रहते बोझ हो जाते हैं। दिल की हर बात हर राज़ कभी न कभी, किसी न किसी के ...

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जीरांद

मुझे बहुत खुशी है कि तुम इस राह पर नहीं चले और कभी चलना भी न। यही बहादुरी है। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद आदमी तनावग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है और भटका हुआ आदमी चाहे बाहरी रूप में सही सलामत नज़र आए, पर वास्तव में होता नहीं।

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तनावः सेक्स का दुश्मन

– सुनीता सिंह प्रकाश पटेल ने जब अपनी दिनचर्या पर ध्यान दिया तो वह अंदर तक घृणा से भर गया। उसकी पत्‍नी के चिकित्सक ने उसे अपने कार्यक्रम में सेक्स को भी जोड़ने के लिए कहा था क्योंकि उनकी शादी को 4 साल हो गए थे और उनका कोई बच्चा भी नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि वो हमेशा अपने ...

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